Sunday, 14 January 2018

फेंग शुई - वैज्ञानिक आधार


तत्व ज्ञान के अनुसार एक अति सूक्ष्म, परम तेजोमय, पराम् चेतोमय, अद्भुत विलक्षण शिव तत्व अनंत तक फैला हुआ है तथा यह सृष्टि उसी शिव तत्व से उत्पन्न होने वाला भंवर है। जिस प्रकार वायु मंडल में चक्रवात उत्पन्न होता है, उसी प्रकार यह भंवर भी अपना विस्तार करता जाता है। जैसे कि वायुमंडल में चक्रवात उत्पन्न होने से पूर्व वायुमंडल शांत रहता है तथा उसमे कोई भी शक्ति उत्पन्न नहीं हो सकती है। उसी प्रकार जब वह अनंत तक फैला मूल परम शिव तत्व शांत रहता है तो उसमे कोई शक्ति नहीं होती तथा कोई गुण नहीं होता, परन्तु जब इसमें भंवर की उत्पत्ति होती है तब उसमे बल धाराएं उत्पन्न हो जाती हैं और शक्ति उत्पन्न होती है। यही परम शिव तत्व ऊर्जामय है, इसलिए जब भंवर उत्पन्न हो जाता है तो उसकी धाराओं के घर्षण से एक ऊर्जा शक्ति का सर्किट बनता जाता है, जिससे इस सर्किट की धाराएं जहां जहां एक दूसरे को प्रभावित करती हैं वहां वहां नया सर्किट बन जाता है। इसी प्रकार परमाणु जीव वनस्पति, ग्रह, तारों, निहारिकाओं एवं ब्रह्मांड का अस्तित्व बनता है। इन सभी का पावर सर्किट ब्रह्मांड जैसा ही होता है जो मुख्य भंवर धारा के अनुसार होता है। तत्व ज्ञान मे इसी सर्किट को शिव कहा जाता है। इसी कारण प्राचीन ऋषि-मुनि निर्जीव को बराबर अस्तित्व को नहीं मानते थे। इस भंवर में स्थित सूक्ष्म सर्किट ही मुख्य भंवर को अनुभूत करता है और प्रत्येक सर्किट की अनुभूत क्षमता भिन्न भिन्न होती है, इसलिए प्रत्येक सर्किट अपनी अनुभूतियों के अनुसार ब्रह्मांड को अनुभूत करता है। प्रत्येक सर्किट की अनुभूति  भिन्न भिन्न होती है, अत: प्रत्येक सर्किट का ब्रह्मांड भी भिन्न भिन्न रहता है,  जैसे कि मनुष्य का ब्रह्मांड, मछली का ब्रह्मांड, मच्छर का ब्रह्मांड एक नहीं हो सकते, क्योंकि जीव की इंद्रियों की सामर्थ्य अलग अलग होती है और वह एक ही जगत को अपनी अपनी क्षमता के अनुसार अलग अलग अनुभूत करता है। जबकि उसमे से एक भी सत्य नहीं होता। क्योंकि इन सबके ऊपर माया का प्रभाव होता है। इसी कारण तत्व विज्ञानं में जगत ब्रह्मांड की शक्ति को माया, मायाविनी  नामो से सम्बोधित किया जाता है। जबकी ब्रह्मांड, जीव, कण, ग्रह, तारों मेँ एक ही सर्किट है। इस सर्किट का स्वरूप भी कछुए के सामान है। कहीं पर कछुए की तरह सर निकले है तो कहीं उसे अंदर समेटे हुए है। पूंछ, हाथ एवं पैरों की स्थिति भी यही है। कही अंदर समेटे है कहीं बहार निकले हुए है। यह कछुआ भंवर में अधोगामी रूप से गतिशील है अर्थात सिर नीचे एवं पूंछ ऊपर है। उपर्युक्त साक्ष्य के अनुसार सारे देवी-देवता, यक्ष-किन्नर, चाँद-तारे, ग्रह-नक्षत्र, वस्तु-कण, परमाणु अदि इसी सर्किट में निवास करते है। यह सर्किट वैसे तो सभी में होता है, इसलिए सभी में यह शक्तियां विद्धमान होती है। यह ऊर्जा सर्किट वैसे तो ऊर्जा उत्सर्जन बिंदु एवं उनसे उत्पन्न होने वाली ऊर्जा तरंगों का विवरण है। इस कछुए एवं वास्तु पुरुष दोनों में एक ही सर्किट होता है। फेंगशुई में यह कछुआ लो शू ग्रिड के रूप में जाना जाता है। 



इसी पावर सर्किट के विभिन्न बिंदुओं से निकलने वाली ऊर्जा तरंगो एवं उनकी व्यवस्था का क्रमबद्ध अध्ययन करने वाले शास्त्र ही फेंग शुई वास्तु माना जाता है। इसे लो शू ने खोजा था, क्योंकि यह सृष्टि में जब कोई अस्तित्व बनता है, जब किसी इकाई का प्रादुर्भाव होता है तब उसमे उसी ऊर्जा चक्र का निर्माण होता है जो ऊर्जा चक्र ब्रह्मांड में है। 

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