Sunday, 14 January 2018

फेंग शुई का तत्वों से संबंध


 फेंग शुई की सम्पूर्ण कला तत्वों पर ही आधारित है।
" ची " तत्व।
 फेंग शुई का पहला तत्व है 'ची' जिसका अर्थ होता है 'श्वास' अर्थात 'ची' एक प्रकार की विद्दुत चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति का नाम है जो इस भौतिक संसार मे मानव शरीर के अंदर प्रवाहित होती है। यह एक प्रकार की आध्यात्मिक शक्ति है जिसका प्रत्येक मानव के जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। यह प्रभाव भी इस बात पर निर्भर करता है कि 'ची' का उपयोग व्यक्ति अपने वातावरण में किस प्रकार से अथवा किस स्वरूप में करता है, सकारात्मक या नकारात्मक। प्रत्येक मानव के शरीर में 'ची" का प्रवाह उसी प्रकार से होता है जिस प्रकार से धमनियों में रक्त प्रवाह होता है। यही 'ची' चौदह महत्वपूर्ण धमनियों एवं शिराओं में प्रवाहित होती है, जिसके महत्वपूर्ण ऊर्जा शक्ति केंद्र स्थान होते है, जिन्हे वैज्ञानिक भाषा में चक्र कहा जाता है। मानव के सम्पूर्ण शरीर में सात प्रकार के ऊर्जा चक्र होते है, जो  फेंग शुई के अनुसार निम्न हैं -





१) जंघा चक्र : जंघा में , 

२) नाभि चक्र : नाभि में, 

३) प्लेक्सस चक्र : सोलर प्लेक्सस में, 

४) ह्रदय चक्र : ह्रदय में, 

५) कंठ चक्र : गले में, 

६) त्रिनेत्र चक्र : भौंहों के बीच में एवं 

७) मस्तिष्क चक्र : सर के शिखर पर।




यदि व्यक्ति के शरीर की 'ची' ठीक तरह प्रवाहित न हो रही हो तो वातावरण की 'ची' में वृद्धि होने के परिणाम नगण्य होंगे अर्थात वातावरण की 'ची' की किसी भी स्थिति में वृद्धि नहीं हो सकेगी। इसलिए शारीरिक 'ची' सही मात्रा में प्रवाहित करने के लिए और फेंग शुई द्वारा अधिक से अधिक सुखद परिणाम पाने के लिए कम से कम पंद्रह मिनट तक ध्यान योग साधना करना अत्यधिक आवश्यक है। 


फेंग शुई के अनुसार मुख्य रूप से ध्यान दो ही प्रकार लगाना महत्वपूर्ण होता है --

चक्र ध्यान
सर्वप्रथम व्यक्ति आरामदायक स्थिति में अपनी पीठ को सीधा करके बैठे तथा शरीर को पूरा आराम दे और फिर धीरे-धीरे अपना ध्यान चक्रों पर केंद्रित करें। ध्यान की शुरुआत जंघा चक्र से करें तथा एक घूमते हुए रथ के पहिए की तरह शक्ति के स्वरूप की कल्पना करें। इस प्रकार कुछ क्षणों तक ध्यान केंद्रित करते रहें। उसके पश्चात नाभि चक्र से होते हुए अन्य चक्रों पर ध्यान केंद्रित कर अंत में मस्तिष्क चक्र तक ध्यान लगाए। 
यह व्यायाम शरीर के चक्र को उत्तेजित कर शरीर में 'ची' ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ाता है। जब व्यक्ति यह व्यायाम करता है, तो उसे अपने अंदर एक अजीब सी स्फूर्ति व हलकापन महसूस होने लगता है। 

श्वास ध्यान 
इस प्रकार के व्यायाम में एक बार फिर व्यक्ति फिर आरामदायक स्थिति में बैठे और अपनी पीठ को बिलकुल सीधा रखे, फिर आंखे बंद कर शरीर को ढीला छोड़ कर पुन: शरीर को पूरा आराम दे। जब शरीर पूरी तरह आराम की स्थिति में हो तब वह अपनी श्वासों पर ध्यान लगाए। श्वास न गिने बल्कि उनके नासिका से निकलने एवं वापस जाने मात्र पर ध्यान दें। यदि मन कहीं और लगा हुआ है, तो इस बात की चिंता बिल्कुल न करें। मात्र अपना ध्यान अपनी श्वासों पर लगाएं। इस व्यायाम से उस व्यक्ति को ऐसा अनुभव होगा कि जैसे-जैसे श्वास धीमी होने लगेगी वैसे ही वैसे उसका मस्तिष्क बिल्कुल शांत होता जाएगा। जैसे-जैसे वह व्यक्ति इस व्यायाम में वृद्धि करता जाएगा उसका संतुलन बनता जाएगा।  इस प्रकार उस व्यक्ति की भावनाऐं एकाग्र होती चली जाती है जिससे उसको एक प्रकार की मानसिक शांति मिलनी शुरू हो जाती है। 

वातावरण  में 'ची'
जिस प्रकार से प्रत्येक मानव शरीर में 'ची' ऊर्जा शक्ति प्रवाहित होती है, उसी प्रकार ब्रह्मांड और प्रकृति के वातावरण में भी 'ची' ऊर्जा शक्ति प्रवाहित होती है। 'ची' ऊर्जा का वातावरण में तेज प्रवाह अथवा धीमा प्रवाह उस व्यक्ति के जीवन में विभिन सकारात्मक एवं नकारात्मक अनुभवों का योगदान होता है। 
एक प्राकृतिक वातावरण में ज्यादातर 'ची' ऊर्जा पूर्ण स्वतंत्र रूप से वातावरण में संतुलन बनाए रखती है।  कृतिम वातावरण में ज्यादातर 'ची' ऊर्जा का मार्ग मानव निर्मित संरचनाओं अथवा कृतिम साज-सज्जा की वस्तुओं द्वारा अवरोधित हो जाता है, जो एक अस्त-व्यस्त एवं अजीब प्रकार के वातावरण का निर्माण करता है। 'ची' के मध्य प्रतिरोध रूपी दरार (रूकावट) उत्पन्न हो जाती है।

जैसा की 'ची' ऊर्जा को प्रत्यक्ष रूप में आखों से देखा नहीं जा सकता है, केवल महसूस किया जा सकता है। जिस प्रकार समुद्र के तट पर शांति से घूमने तथा शोर भरे वातावरण में चलने का तुलनात्मक अनुभव करें तो हमें फर्क पता चल सकता है, क्योंकि समुद्र के तट पर 'ची' ऊर्जा स्वतंत्र रूप से प्रवाहित होकर उस व्यक्ति के शरीर की 'ची' ऊर्जा के साथ संतुलन बनाए रखती है, जिससे उस व्यक्ति को भावनात्मक शांति प्राप्त होती है। 
फेंग शुई के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने ग्रहों एवं वातावरण का स्वरूप अर्थात नमूना (मॉडल) बदलकर 'ची' को सवतंत्र रूप से प्रवाहित कर सकता है। इस प्रकार व्यक्ति की शारीरिक 'ची' ऊर्जा भी स्वतंत्रता से प्रवाहित हो कर व्यक्ति को शांति, स्मृद्धि, सफलता, यश, वैभव, एवं संतोष प्रदान करती है। 

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