18 . गृह स्वामी के भाग्योदय के लिए :

फेंग शुई के अनुसार भवन के मुख्य द्वार उस भवन में रहने वाले व्यक्तियों एवं गृहस्वामी के भाग्य को जाग्रत कर सकता है और बिगाड़ भी सकता है, क्योंकि भवन के मुख्य द्वार से ही व्यक्ति का भाग्य भवन में प्रवेश करता है। वैसे तो भवन के आस-पास अथवा भवन के भीतर या बाहर शुभ वस्तुएं रख देना मात्र ही प्रयाप्त नहीं होता, इसलिए सबसे पहले यह देखें की मुख्य द्वार के समीप शौचालय तो नहीं है। मेरे अनुभव के अनुसार शौचालय मुख्य द्वार से काफी दूर बनाना चाहिए, जिससे भवन में प्रवेश करने वाली भाग्यशालिनी 'ची' ऊर्जा शौचालय के संपर्क में आकर प्रतिकूल न बन सके, क्योंकि शौचालय सदैव अशुभ 'ची' नकारात्मक ऊर्जा की उतपत्ति करते हैं। यदि किसी कारणवश शौचालय मुख्य द्वार के समीप हो तो उसे मुख्य द्वार के समीप ठोस दीवार बनवाकर बंद कर दें तथा दूसरी तरफ शौचालय का द्वार कर ले। इससे 'ची' का अशुभ प्रभाव कम हो जाता है। मुख्य द्वार के पास शौचालय के द्वार को परदे से ना ढकें। उसे ठोस दीवार से ही बंद करें।
19 . पूजाकक्ष :

फेंग शुई के अनुसार भवन में पूजाकक्ष सदैव मुख्य द्वार के सम्मुख भवन के ईशान (उत्तर-पूर्व) कोण में बनवाना चाहिए। पूजा कक्ष को सदैव स्वच्छ रखें। पूजा कक्ष में मूर्तियां फर्श के स्तर से ऊंची रखनी चाहिए तथा पूजा पक्ष में दीपक अथवा बल्ब सदैव जलाए रखना चाहिए जिससे पूजाकक्ष में सदैव सकारात्मक 'ची' ऊर्जा उत्पन्न होती रहे। भूलकर भी पूजा कक्ष में भोजन न करें। इस जगह में गन्दा सामान न रखें। यहां झाड़ू पोछा आदि भूलकर भी न रखें, क्योंकि यह पवित्र स्थान है।
फेंग शुई के अनुसार पूजा घर शयन कक्ष में भूलकर भी नहीं बनवाना चाहिए। पूजा कक्ष को शौचालय के समीप, सीढ़ियों के नीचे या सीढ़ियों के सामने भी कभी नहीं बनवाना चाहिए, क्योंकि सीढ़ियों के निकट या सम्मुख पूजाकक्ष महाअशुभ माना गया है। पूजाकक्ष में झाड़फानूस जलाने से सकारात्मक 'ची' ऊर्जा में वृद्धि होती है।
20 . दाम्पत्य जीवन में कलह से बचाव :

शयन कक्ष में फेंग शुई के अनुसार दर्पण ऐसी जगह नहीं लगाना चाहिए जिसमे पूरा का पूरा पलंग परिवर्तित होकर दिखता हो। ऐसे स्थान पर दर्पण लगाने से उस शयन कक्ष से सकारात्मक ऊर्जा बाहर हो जाती है, जिससे दाम्पत्य अर्थात वैवाहिक जीवन कड़वाहट से भर जाता है तथा दाम्पत्य कलह प्रारम्भ हो जाती है। ऐसे भवन में रहने वाले पति-पत्नी एक दूसरे से विश्वासघात करते हैं, क्योंकि उन दोने के मध्य तीसरे व्यक्ति की मित्रता के कारण उन पति-पत्नी के मध्य संबंधों में दरार उत्पन्न हो जाती है। अत: शयन कक्ष में से दर्पण तुरंत हटा दें। यदि ऐसा संभव न हो तो उसे परदे से ढक दे या दर्पण पर वालपेपर लगाएं। मेरे अनुभव के अनुसार शयन कक्ष के भीतरी छत पर दर्पण लगाना सबसे अधिक हानिकारक होता है, क्योंकि ऐसा दर्पण शयन कक्ष में स्थान बढ़ाने का भ्रम उत्पन्न कर नकारात्मक उर्जा का प्रभाव बढ़ाकर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कम कर देता है। ऐसे शयन कक्ष में रहने वाले पति-पत्नी अपनी संतुष्टि के लिए निश्चित रूप से तीसरे व्यक्ति (स्त्री-पुरुष) का सहारा ले लेते हैं। अत: इस ऊर्जा से बचने के लिए शयन कक्ष में दर्पण अथवा ड्रेसिंग टेबल नहीं रखना चाहिए, यदि संभव हो तो शयन कक्ष में कभी भी दर्पण न रखें। यदि रखना ही पड़े तो ऐसे कोण पर दर्पण रखें जिससे उसमे पलंग परावर्तित न हो सके।
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