Saturday, 13 January 2018

फेंग शुई : एक परिचय


फेंग शुई
प्राचीन विद्वानों ने अपने अनुसंधानों एवं अनुभवों से प्रकृति की अनेक रहस्यमयी ऊर्जाओं के संतुलन के ज्ञान के आधार पर फेंग शुई वास्तु के नियमो को बनाया था।  भारतीय वास्तु शास्त्र के अनुसार पंच महाभूतों  के निर्माण के सम्बन्ध में आकाश से वायु, वायु से आकाशजाल, जल से अग्नि एवं अग्नि से पृथ्वी का निर्माण हुआ है। वहीं चीनी वास्तु शास्त्र (फेंग शुई) में भी पंच तत्वों अर्थात जल, काष्ठ, अग्नि, वायु एवं पृथ्वी को संतुलन का आधार मन गया है। वास्तु शास्त्र के नियमो के मूल में इन सभी ऊर्जाओं का समावेश है जिनका विभिन्न दिशाओं से विकिरण एवं उत्सर्जन होता है। जैसे की चुम्बकीय ऊर्जा का प्रभाव मुख्यत: उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा की ओर रहता है। आकाश से अंतरिक्ष ऊर्जा प्राप्त होती है।

पूर्व से सूर्य ऊर्जा प्राप्त होती है, जो की प्राणियों के प्राणो के मूल स्रोत है. सूर्योदय के साथ ही सम्पूर्ण संसार में प्राणाग्नि का संचार  है, इसलिए स्वर विज्ञानं में प्राणवायु को ही आत्मा माना जाता है। उपरोक्त समस्त ऊर्जाओं के संतुलन के लिए प्राचीन विद्धानो  ने ईश्वरीय प्रकृति के रचना के मूल सूत्र को जानने का प्रयास किया है, क्योंकि इस भौतिक जगक का निर्माण एक निश्चित गणितीय मैप एवं आकर के अंतर्गत हुआ है तथा समस्त प्रकार की ऊर्जाओं का प्रभाव निर्धारित समय होता है। लेटिन भाषा में वास्तु शास्त्र को 'जियोमेशिया', अरब देश में 'रेत का शास्त्र', तिब्बत में बागुआ तंत्र एवं चीन देश में फेंग शुई कहा जाता है।


भवन की आवश्यकता मानव जन्म के साथ ही जुड़ी हुई है, क्योंकि आवास प्रकृति से सुरक्षा प्रदान करता है और मनुष्य के आवासगृह से ही भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति होती है, इसलिए हमारे पूर्वजों अर्थात ऋषि-मुनियों ने लाखों वर्ष पूर्व भवन निर्माण योजना अर्थात वास्तु शास्त्र पर अनेको  नियम बनाये थे, क्योंकि भैतिक जगत में घर मनुष्यों की प्रथम एवं सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता मानी गयी है, अत: वास्तु शास्त्र के माध्यम से ही मनुष्य का विकास संभव है। अत: वास्तु शास्त्र के नियमो का निर्धारण एवं उनका अनुसंधान विज्ञान की सर्वोच्च श्रेणी में आता है, क्योंकि यह भौतिक जगत पंच महातत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश से मिलकर बना है और मानव शरीर भी इन्ही पंच तत्वों से निर्मित है, अत: वास्तु शास्त्र के भवन मनुष्य के शरीर की तरह पंच तत्वों का संतुलन है, जिससे उनमें रहने वाले को स्वस्थता के साथ साथ सुख शांति का भी अनुभव होता है। यही मूल तत्व भारतीय वास्तु शास्त्र में भी निहित है।

फेंग शुई चीन की प्राचीनतम वास्तु पद्धति है। यह विद्या सदियों से पूर्व दिशा में अत्यधिक प्रसिद्ध थी, परन्तु आज के युग में यह पश्चिमी देशों में भी शीघ्रता से प्रसारित होती जा रही है। अत: फेंग शुई के मुलभूत सिद्धांतो की जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है। फेंग शुई का वैसे तो अर्थ है (जल + वायु) अर्थात जलवायु। यदि प्राकृतिक उपाय एवं उपचारों के माध्यम से जल एवं वायु का सन्तुलन प्रकृति के अनुरूप हो तो प्रकृति भी अनुकूल रहती है। वैसे तो चीनी विद्या प्रकृति (स:) एवं पुरुष (हं) का संबंध यिन (ऊर्जा शक्ति) एवं यंग (ऊर्जा शक्ति) संतुलन पर मानते है, क्योंकि  प्रकृति के संतुलन के परिणाम स्वरूप प्राप्त ऊर्जा यिन एवं यांग ही सम्पूर्ण सृष्टि को संचालित एवं नियंत्रित करती है। इसी सौर ऊर्जा को "ची" कहते है. वही ची प्रकृतिजन्य ऊर्जा होकर सृष्टि में अनवरत प्रवाहित होते रहने के कारण जीवन की प्रतिक मानी गई है।  

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